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कभी कभी कुछ ऐसा हो जाता हैं, जिसे देख आँखे सन्न रह जाती हैं. बुद्धि स्तब्द हो जाती हैं , की क्या ऐसा भी हो सकता हैं?ज़िंदादिली नाम शौहरत और मौत सच में हैरान कर देने वाली वाकया हैं , कुछ यही कहानी हैं , टीवी की चर्चित कलाकार “प्रत्युषा बनर्जी” यानि बालिका बधु की आनंदी की. 24 वर्षीय प्रत्युषा ने अपने गोरेगांव स्थित घर में फांसी लगा ली. गंभीर हालत में उन्हें कोकिलाबेन अंबानी अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.24 साल की प्रत्युषा ने बालिका वधू में बड़ी आनंदी की भूमिका से टीवी जगत में कदम रखा था. इसके बाद वह भारत के सबसे बड़े रिएलिटी शो बिगबॉस -7 में भी नजर आ चुकी हैं. इसके अलावा प्रत्यूषा ससुराल सिमर का, पावर कपल जैसे शो का हिस्सा भी रह चुकी हैं.
2010 से अपना करियर शुरू करने वाली एक खूबसूरत और ज़िंदादिल लड़की ने क्यों इस तरह से दुनिया को अलविदा कहा. इसका जबाब शायद किसी के भी पास नहीं हैं? टीवी पर लोगो को अलग बाते करते सुना जा रहा हैं. पुलिस अपना काम कर रही हैं, हम कोई ज़ज़ नहीं जो किसी को दोषी करार दे. पर हा सवाल मन में उठते हैं की क्यों ? इतनी छोटी से उम्र में ज़िंदगी को अलविदा कहा.
एक चुलबुली लड़की शो ज़िंदादिली से भरपूर थी, न जाने उनकी आँखो में कितने सपने होगे अपने आने वाले कल को लेकर? एक छोटे शहर की लड़की जिसने अपनी एक अलग पहचान बनाई , भीड़ में नाम कमाया . खुद को अपने सपनो को एक मौका दिया . या मैं कहु तो सपनों को उड़ान दी? आखिर जीवन में ये कैसे काले बदल आये की उन्होंने ज़िंदगी को ही अलविदा कह दिया.प्रत्युषा का जनम “जमशेदपुर” में हुआ था.
जमशेदपुर से मुंबई का सफर आसान नहीं था, टीवी पर अलग अलग रंग बिखेरती “प्रत्युषा ” कभी आनंदी तो कभी “मोहिनी” आप खुद ही सोचिये की जिसे अपने काम से प्यार हो जो अलग अलग भूमिका का निर्वाह करे , और खुद समाज को प्रेरित करे , “बालिका” बधु समाज की बुराइयों पर ही तो कुठाराघात हैं की छोटी उम्र में विवाह बच्चो के जीवन का उनके सपनों का अंत हैं. हम जो कुछ करते हैं उससे कुछ न कुछ ज़रूर सीखते हैं? फिर “प्रत्युषा ” ने तो चाहे ” सीरियल” जगत में ही सही पर अपने उतार चढ़ावो को जिया हैं, तब उन्होंने अपने जीवन को अलविदा कैसे कह दिया?
कौन ज़िम्मेदार हैं ? कौन दोषी हैं यह कहना बहुत मुश्किल हैं पर “युवा” देश का ही नहीं बल्कि सपनो का भी “भविष्य” होते हैं . यदि एक कामयाब युवा ही अपनी आँखे बंद कर ले तो हा हम सबको सोचने की ज़रुरत हैं? की चूक कहा पर हुई? दोषी कौन हैं ? अकेलापन या रिश्तों का बनना बिगड़ना यह सब कुछ तो ज़िंदगी का आम हिस्सा हैं, और “सितारों” की दुनिया में ही न जाने ऐसे कितने कलाकार हैं जो लगातार मेहनत करते हैं कभी उनका काम “लोगो” के मन में रचता बस्ता हैं तो कभी नहीं . पर कोई ज़िंदगी से हार तो नहीं मानता.
पतजड के बाद आते हैं दिन बहार के , जीना किया ज़िंदगी से हार के.
कविताओं की कुछ पंक्तिया या लेखकों का काम हम सबको नयी उचाईया देता हैं , हिम्मत देता हैं. प्रत्युषा की मौत शायद एक सवाल बन कर खड़ी हैं? और यह सबक भी देती हैं की कुछ भी हो जाये हार मत मानना, ज़िंदगी को मौका ज़रूर देना चाहिए , क्योकि हर रात की सुबह होती हैं. जब अँधेरा घना हो तो समझ लीजिए की सुबह होने वाली हैं . क्योकि रौशनी की एक किरण अंधेरो को कोसो दूर भगा देती हैं, जीवन नाम हैं तपस्या का . आगे बढ़ने का हो सकता हैं आप अपने काम में हार जाये ?पर ज़िंदगी को मत हारने दीजिये?
जब भी कभी घोर निराशा हो तो मम्मी पापा का चेहरा याद करे ? उनकी परवरिश को याद करे ? याद करे उनके “आशीर्वाद” को उनकी “दुआओ” को क्योकि हम सब अपने माता पिता की परछाई ही तो हैं. सोचिये आपकी लाश या आपको खून में लत पत देख उन्हें कैसा लगेगा वो तो शायद जीते जी ही मर जाये . ज़िंदगी को खत्म करने में शायद सिर्फ और सिर्फ एक पल लगता हैं , पर उसे सवारने में बरसो लग जाते हैं. ज़िंदगी न रूकती हैं न थकती .
समुंदर के तट को देखो , लगा हैं वह लहरों का कारवा, लड़ो और जीतो ज़िंदगी को तुम.
अंत का पता नहीं पर हम सब हैं “योद्धा ” कर्तव्य हैं हमारा लड़ना , और आगे बढ़ना.
यही कुछ शब्द हैं , जिन पर खुद ही विचार कीजिए.
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