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मैं की भावना में जलता देश

deepti saxena
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कहते है की सभ्यता संस्कृति यह सब आने वाले समय की नीव है, मानवता ही जीवन का आधार है , हज़ारो दार्शनिको का भी यही मानना था, भारत या भारतीयता सहनशीलता की मिसाल मानी जाती है ,हम “वसुधैव कुटुंबकंम” के सिद्धांत पर विश्वास रखते है , सम्पूर्ण विश्व को ही अपना परिवार समज़ते है, प्रकर्ति के प्रति समर्पण हमारी मान्यताओ में स्पस्ट दिखाई देता है . नदी को माता मानना घर पर तुलसी का पूजन और कितनी ही प्रथाए ऐसी है जिसमे हम बरगद और पीपल की पूजा करते है. वास्तव में हमारी नीव में विज्ञानं और परमात्मा दोनों का ही मिलन है.
यदि हम इतिहास के पन्नो को पढ़े तो पायेगे की कैसे दो विश्व युद्धों की आग में सम्पूर्ण मानवता जली है, उसके के बाद मानवता और जीवन के खातिर यह संकल्प लिया महाशक्तियों ने की आतंकियों के खिलाफ सम्पूर्ण विश्व एक जुट होकर लड़ेगा पर अगर आप सिर्फ बीते दिनों को देखे तो पायेगे “फ्रांस ” पर हमला , सीरिया की दुर्दशा , खुद भारत में “जाटो” का आंदोलन दिल्ली यूनिवर्सिटी में ” विद्यार्थियों ” का आंन्दोलन यह कैसा माहोल है , कैसी बर्बरता कैसा अंधापन जो मुल्क को मानवता को देख्ना ही नहीं चाहता , क्या हमारे संस्कार या शिक्षा यही सिखाती है ? की सिर्फ अपने बारे में सोचो सिर्फ मैं हम तो अब दिखाई ही नहीं देता .
विद्या ददाति विनयम यह शब्द तो शायद कही दुर्मिल से हो गए है , पहले कहा जाता था की यदि जागरूकता होगी तो चेतना जागेगी . पर आज “चेतना ” तो जैसे मर ही गयी है . सिर्फ और सिर्फ “जाट ” आंदोलन में रविवार को 800 से ज्यादा ट्रेने रद करनी पड़ी २०० ट्रेनों का रूट बदलना पड़ा , सड़क से लेकर घर तक आम आदमी बदहाल देश की सम्पति को इन कुछ लोगो ने लूटा , आम जीवन बदहाल कर दिया , इसकी ज़िम्मेदारीकौन लेगा , वैसे जिस धरती पर अहिंसा के मसीहा ने जनम लिया वहा अपनी बात रखने का यह बहुत अच्छा तरीका है .
विचारो की आज़ादी स्वतंत्रता और मनमानी में फर्क होता है और यह फर्क हमें याद रखना चाहिए , क्या यह आजकल का नया चलन है की बात कहनी है तो तोड़ फोड़ करो . अब क्यों लोगो को गुस्सा नहीं आता , कहा है समाज के ठेके दार ? इतनी नकारत्मकता आखिर कार हमारे विचारो में आई कहा से ? यह कैसा रोष है युवा वर्ग का , क्यों आज का युवा पथभ्रस्ट हो गया है. कही आतंकी छोटे छोटे बच्चो को बन्दूक पकड़ा कर अपना मतलब साद रहे है, तो कही खुद देश वासी अपनी ही सम्पती का सर्वनाश कर रहे है.क्या गीता . रामायण सिर्फ टी आर पी के लिए या टीवी चैनेलो के लिए है ? हम “धर्म ग्रंथो ” को अपने कर्मो में कब उतारेंगे ? देश सम्मान करने के लिए होता है, युवा वर्ग की ज़िम्मेदारी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने की है , वैज्ञानिक चिंतन कर देश को विश्व को कुछ सकारत्मक देने की है .
कहा तो देश का एक वर्ग “नीरजा ” को सलाम करता है , जिसने बिना बन्दुक उठाये अपना कर्तव्य निभाया , हिन्दुस्तान पाकिस्तान और खुद अमेरिका भी “नीरजा ” को सलाम करता है . और एक तरफ हम लोग जिन्हे पूर्वजो से मिला तो बहुत कुछ है पर हम शायद अपने ही कर्तव्यो को भूल गए है . यह समय जागने का है , एक तरफ प्रकर्ति भी हमें कड़ा सन्देश दे रही है , हज़ारो किसान “आत्महत्या ” कर रहे है , हमारा एक्सपोर्ट “ठप ” हो चूका है , कितने ही ऐसे स्टेट है जहा “पीने के पानी ” की समस्या है . क्या यह मुद्दे कदम उठाने योग्य नहीं है . हमें अपने अंदर छिपे ज्ञान को जाग्रत करना होगा और यह सोचना होगा की सही दिशा कौन सी है ? हम किस रास्ते पर जाये ?विचार कीजिए ज़रूर विचार कीजिए क्योकि सवाल बहुत है और शायद ज़बाब हमारे पास नहीं है.
यह बर्बरता जो नागफनी की तरह पुरे देश को खा रही है , यह नाकामी आखिर कार है किसकी ? वैसे तो सरकार गरीबो के लिए बहुत लड़ती है , आम आदमी की बात कुछ सरकारे तो आम आदमी के समर्थन मे पुराण बखान तक लिख देती है , पर करती कुछ नहीं ? क्योकि लाखो करोड़ो लोग जो महानगरो की तंग गलियो में रहते है वो सिर्फ सरकार की योज़नाओं में पन्नो की ही शोभा बढ़ाते है , क्यों गरीबी को जड़ से मिटाने का प्रयास किया जाता है , हमारा देश कितनी मात्रा में कचरे से बिज़ली उत्पन्न कर पाया है ? सफाई अभियान तो बहुत ज़ोर पर है परन्तु देश को आज भी कोई “गंदगी ” से मुक्त नहीं कर पाया , जबकि पांच हज़ार साल पुरानी ” सिधु घाटी ” की सभ्यता में सफाई को एक विशेष स्थान दिया गया था .
बेटिया देश का भविष्य है , बेटियो को पढ़ाओ आगे बढ़ाओ पर जब वही बेटिया जाटो की जलाई आग में घरो में जुलस रही थी , तब कहा थे हमारे समाज के ठेके दार ? आज भी देश में “बलत्कार ” की वारदाते कम नही हुई है , एक सुरक्षित सामाज यह सपना तो शायद अब सपनो की ही बाते है . न जाने ऐसे कितने ही विषय है जिनके जबाब मन तलाश रहा है ? पर उम्मीद का दामन न ही छोड़ा है , न छोड़ेगे किसी भी स्तर पर ? हम प्रशन ज़रूर पूछेंगे ?

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