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विक्रम बत्रा

deepti saxena
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देश को गौरवान्वित करने में हमारे देश के सैनिको ने अग्रणी भूमिका निभाई है. सीमा पर खड़े यह जवान पूरा जीवन देश की रक्षा करते है, हस्ते हस्ते अपने प्राण न्योछावर कर देते है? ताकि भारत माँ का सिर शान से सदा ऊचा रहे? वैसे तो देश की आर्मी को सालम करने के लिए या उनके योगदान की सरहना करने लिए हमारे पास शब्द ही नहीं है, क्योकि जो लोग दुसरो के लिए जीते है, सम्मान के लिए जीते है . उनके आगे तो खुद समय भी नतमस्तक हो जाता है.
जुलाई 1996 में विक्रम बत्रा ने भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया।1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण भी लिए। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया।
विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी पर “यह दिल मांगे मोरे कहा ” तब यह नाम शायद पुरे हिन्दुस्तान में छा गया. इस मिशन में विक्रम के कोड नाम शेरशाह था, उनकी ज़िंदादिली और मज़बूत हौसले ने उन्हें ” कारगिल का शेर” की संज्ञा दी गयी. कहा जाता है की हमारी छोटी छोटी आखो में पूरा संसार समां जाता है? जीवन के रंग उत्साह सब कुछ हम अपनी आखो में बुन लेते है. शेर की दहाड़ जंगल में शायद अपने ही रंग भर देती है. एक मस्त शेर शिकार पर न सिर्फ खौफ होता है , बल्कि उसका उन्माद दुश्मनो के “छक्के छुड़ा” देता है. विक्रम बत्रा ने लेफ्टिनेंट अनुज नैयर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा। वास्तव में विक्रम के हौसले ने दुश्मन को निस्तोनाबूत कर दिया.
मिशन लगभग पूरा हो चूका था, युद्ध के दौरान लेफ्टीनेंट नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गये थे।जब कैप्टेन बत्रा लेफ्टीनेंट को बचाने के लिए पीछे घसीट रहे थे तब उनकी की छाती में गोली लगी, भारत माता के इस वीर सपूत ने अंतिम समय में “भारत माता की जय” कहा . और अपनी आखे सदा के लिए मूँद ली.
१५ अगस्त 1999 को विक्रम बत्रा को “परमवीर” चक्र से सम्मानित किया गया. कुछ लोग अपनी ज़िंदगी में एक ऐसा इतिहास लिख जाते है जो आने वाली पीढ़ियो के लिए एक मिसाल बन जाता है. जिनके पदचिन्हो पर चल कर युवा वर्ग अपना जीवन सफल करता है.
एक जवान सिर्फ सीमा पर ही नहीं बल्कि समाज में अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति कितना समर्पित रहता है, कैप्टेन बत्रा ने इसमें भी मिसाल कायम की है विक्रम बत्रा ने 18 वर्ष की आयु में ही अपने नेत्र दान करने का निर्णय ले लिया था। वास्तव में कुछ लोगो का जीवन एक ग्रन्थ बन जाता है. जो जीती जागती मिसाल होते है. हम सबने ऐसे अनमोल रत्नो के बारे में अक्सर पढ़ा है, पर कई बार यह बाते सिर्फ इतिहास बनकर रह जाती है. कुछ लोग इन्हे सामान्य ज्ञान में पढते है, या कभी कभी कभी हम १५ अगस्त या २६ जनवरी को इन वीरो को याद कर लेते है. पर वास्तव में इन “महा नायको” की जगह हमारे दिल में होनी चाहिए .
हमारा वर्तमान हमारे आने वाले कल को बनाता है, बड़ी बड़ी बाते ही नहीं “कुछ काम” भी कीजिए. या हो सके तो कम से कम अपनी बातो में देश के महानायकों को स्थान देकर , अपने नागरिक होने का फ़र्ज़ तो अदा कीजिए.

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