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फिर हिल उठा हिमालय

deepti saxena
deepti saxena
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है प्रकर्ति की अपनी ही मर्यादा न खेलो बार बार इससे तुम?
समज़ सको तो समज़ लो की अब धरती की गोद में छिपे है अनेको रहस्य ?
कभी हिमालय थर्राए तो कभी कश्मीर की धरती पर जल अपना रोद्र रूप दिखाए ……….
गुजरात में धरती का फटा था एक बार सीना न युग बीते न ही सादिया की डूब गया था प्यारा अंडमान …………..
हर दिन एक नयी कहानी , आखिर क्यों है प्रकर्ति इतनी अंजानी ?
क्या खो गए है हम खुद में ही, या अनसुनी है प्रकर्ति की गुहार?
कुछ न कुछ तो कहना है इस “धरती माँ” का, सुन लो ज़रा ऐ ” मानव”
बदलाव, ही है एक सतत नियम, पर क्यों है आज ये इतना “विनाशकारी” ??
प्रश्न तो है कई, पर जबाब नहीं है कोई?
वेदो, पुराणो को पलटो याद करो बड़ो की कुछ सीख…….
सोचो , अब जागो , क्योकि देता नहीं “विनाश” बार बार मौके.
सम्भालना है तो आज ” जागो”?
सतर्क, सजग , रहने में ही है भलाई?
प्रकर्ति है हम सबकी न समजो तुम इसे “पराई”

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