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स्वतंत्रता अधिकार है हर मानव का, कहते है ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है मानव, जिसके पास असीमित बुद्दि तथा ताकत है, शायद इसी बुद्धि का इस्तेमाल कर मानव ने मानव पर शासन किया? मानवता की सभी कसौटियों को पार कर हैवानियत की मिसाल है “अंग्रेजी” हुकूमत . २०० वर्षो तक देश पर राज किया उन्होंने , कहते है की बुरा करने वाले तो चले जाते है पर पीछे छूट जाती है उनकी परछाईया , उनके कर्म जो इतिहास कभी किसी को भी भूलने नहीं देता. भूली इमारतों की दस्तांन , गूँज उन कर्मो की जो अमिट है अज़र अमर है, अंग्रेज़ो के अत्याचारों का प्रमाण देने की शायद किसी को कोई आवशयकता नहीं है, पर एक इमारत ऐसी भी है जिसने बरसो चुप रहकर अपने बच्चो पर अत्याचार होते देखा .उन्हें पल पल मरते देखा, कहते है की इमारतों में जान नहीं होती , पर मैं ऐसा नहीं मानती , क्योकि अगर यह सत्य है तो ” अंडमान ” की ” सैल्यूलर जेल आज वीरान क्यों है? सजा ऐ ” काला पानी” हम सबके ज़हन में ” वीर सावरकर” का नाम आज भी है, जो ” काला पानी ” को खुद ज़ी कर आये थे . उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था. यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है। यह अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी, व सागर से भी हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पडता था। यह काला पानी के नाम से कुख्यात थी।अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह इस जेल की नींव 1897 में रखी गई थी। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था। आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं। कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं। यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे।
क्या इन सब बातो को जान कर हम आज भी मानते है की मानव ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है? यह कैसा शासन था जहा ” मानवता” का कोई नामोनिशान ही न था. इतना दर्द जो आज भी आखो में आसु ले आता है. अनजान ही सही अनसुनी ही सही पर एक टीस थी उस गूँज में जो ” सैल्यूलर जेल” में आज भी कैद है. हम सब बड़ी खुशी से ” वैलेंटाइन्स डे” ” फ्रेंडशिप ” डे तो मनाते है, आज कल तो १५ अगस्त और २६ जनवरी पर दिल्ली पूरी तरह से सजी धजी रहती है, प्रधानमंत्री की स्पीच यह सब हमारे लिए बहुत महत्व रखती है, और यह ” गर्व” की बात है, पर क्या हमें ” शहीदो ” के बलिदान को भुला देना चाहिए . क्या ” सैल्यूलर जेल” एक दस्तक नहीं है हम सबके दिलो दिमाग पर, बिखरी इमारतों की दास्तान , हम सब को घडी की सुईयों को उल्टा घुमाना होगा. महसूस करना होगा उस दर्द को, और साथ देश के प्रति अमिट प्रेम को , जो जेल के वीर सेनानियों में था, मेरे लिए जेल में रहा हर इंसान “भारत माता” का सपूत है, जो कैदी नहीं था ,देश का गौरव था, जिन्होने अपनी पूरी ज़िंदगी हमें दे दी, ताकि महक सके आने वाला हिन्दुस्तान , वो जेल से देश की खुशबू को महसूस किया करते थे. ताकि हम सब ज़ी सके , सम्मान के साथ , ” हिन्दुस्तान” की आज़ादी की नीव में ” सैल्यूलर जेल” की छाप है, वो एक तीर्थ है, कालापानी नहीं एक आगाज़ है की देश प्रेम की कोई सीमा नहीं, एक ज्योत है जो बरसो से जल रही है. और जलती रहगी.
चाहे कही भी सही , किसी भी रूप में सही, पर देश प्रेम की ज्योत जलनी चाहिए , और सदा अमर होनी चाइये.
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