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या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संसिस्था,
नमस्तस्यै , नमस्तस्यै ,नमस्तयै , नमो नमा
नारी को शक्ति का रूप माना जाता है. इतिहास गवाह है की यदि नारी जीवनदायिनी है, तो जीवन पथ पर एक कुशल योद्धा भी है, जो हर कसौटी को पूर्ण रूपेण पार कर सकती है. नारी को हम माँ ,बेटी ,बहन और न जाने कितने ही रूपो में पहचान ते है. नारी ने कल्पना बनकर आसमान को छुया है , तो ” प्रतिभा ” बन देश को आगे बढ़ाया, इन्द्रा गांधी के रूप में हम नारी के नेतृत्व करने के गुण के आगे पहले ही नतमस्तक है, तो मैरी कॉम बन नारी ने साबित किया की आज का समय पुरुषो का नहीं बल्कि हमारा है, हम वो पंछी है जो आसमान के भी पार जाना चाहते है.
लेहरो से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालो की हार नहीं होती.
अभी हाल ही में एक और शक्ति स्वरूपा ने यह सिद्ध कर दिया की यदि ” हौसले बुलंद ” हो तो ” एवेरेस्ट ” भी सलाम करती है. मैं बात कर रही हु ” अरुणिमा सिन्हा ” की एक ऐसी अपराजिता की जिसने अपना पैर गवाया पर आत्मा की ताकत नहीं और यह सिद्ध किया की आदमी चाहे तो कुछ भी कर सकता है, हम में से कितने लोग भाग्य को दोष देते है, अगर मगर करते है, देश को गाली देते है, मज़बूरियों की दुहाई देते है और यह भूल जाते है ” की तक़दीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं हुआ करते” अरुणिमा उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की निवासी हैं और केंद्रीय अद्योगिक सुरक्षा बल (सी आई एस एफ) में हेड कांस्टेबल के पद पर 2012 से कार्यरत हैं.12 अप्रैल 2011 को लखनऊ से दिल्ली जाते समय अरुणिमा का बैग और सोने की चेन खींचने के प्रयास में कुछ अपराधियों ने बरेली के निकट पदमवाती एक्सप्रेस से अरुणिमा को बाहर फेंक दिया था, जिसके कारण वह अपना पैर गंवा बैठी थी.पर उसने न खुद से हार मानी, ना अपनी ज़िंदगी से ” कर खुद को बुलंद इतना की किस्मत बनाने से पहले खुदा तुझसे पूछे की तेरी रज़ा क्या है?” ऐसी ही बुल्दी को पाने वाली अरुणिमा ने ठान लिया की वो एवरेस्ट को फ़तेह करेग़ी ,ज़िंदगी को ज़ीने का ज़ज़्बा अरुणिमा में कूट कूट कर भरा था, सही मायनो में अरुणिमा ” विकलांग” थी ही नहीं ? ” वो तो ज़िंदगी की ताल पर थिरकना चाहती थी, जहा पैरो की नहीं ” आत्मविश्वास” की ज़रूरत थी. अरुणिमा टाटा समूह के ‘इको एवरेस्ट अभियान’ की टीम मेंबर के तौर पर शिखर पर चढ़ी थीं।अरुणिमा ने पिछले साल उत्तरकाशी में ‘टाटा स्टील अडवेंचर फांउडेशन शिविर’ में भाग लिया था। शिविर में उन्हें माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेन्दी पाल ने ट्रेनिंग दी थी। २१ मई २०१३ को १०.५५ पर अरुणिमा ने एवेरेस्ट को फ़तेह किया , अरुणिमा ने ५२ दिन का समय लिया अपनी उड़ान को पूरा करने में. एवेरेस्ट पर पहुंच अरुणिमा ने यह सन्देश दिया हम युवाओ को की किस्मत को खुद लिखना सीखो , भगवान भी उसी के साथ होता है जो अपनी मदद खुद करता है, सफलता सतत प्रयास मांगती है , अरुणिमा को स्पोर्ट्स मिनिस्टर जीतेन्द्र सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री ” अखिलेश यादव” ने सम्मानित किया. यह सम्मान शायद ज़िंदगी का सम्मान था. ज़िंदगी भी सलाम उसी को करती है जिसमे कुछ बात हो, अरुणिमा के कभी ना टूटने वाले ज़ज़्बे को मेरा सलाम…
उनको देख तो सिर्फ और सिर्फ यही पंक्तिया याद आती है की
मुश्किलें दिल के इरादे आज़माती है, निगाहो से स्वपन से परदे हटाती है.
हौसला मत हार गिरकर ओ मुसाफिर, मुश्किले इंसान को चलना सिखाती है.
अरुणिमा की कहानी प्रतिक है इस बात का की ” आसमान में सुराग भी हो सकता है, अगर एक पत्थर भी तबियत से उछाला जाये”, भारत की मिटटी पर ऐसे ऐसे शेर पैदा हुए जिन्होने हममे आत्मविश्वास भरा, गर्व करने का अभिमान करने का अवसर दिया . आज कौन कह सकता है की नारी किसी से भी पीछे है. एवेरेस्ट से ऊचा कुछ और नहीं अरुणिमा ने अपनी सफलता से सिद्ध किया की कोई भी मंज़िल कठिन नहीं होती, रास्ता आसान नहीं, पर वो इंसान ही किया जो चुनौतियो का सामना ना कर सके, हो सकता था की अरुणिमा भी हार मानकर बैठ जाती, निराश हो जाती , पर उसने अपनी आप बीती को अवसर बनाया. आज भी अरुणिमा की मुस्कान सम्मान से भरी होती हैं जो कहती है, ” की जीवन में सब दरवाज़े एक साथ बंद नहीं होते यदि एक दरवाज़ा बंद होता है तो दूसरा खुल भी जाता है”. शायद शब्दों की मर्यादा बहुत छोटी है जो अरुणिमा पर गर्व कर सके, हमारी गौरवान्वित वाणी , आखो में उनके लिए ख़ुशी के आंसू, यह सिद्ध करते है हर भारतीय उन पर कितना गर्व महसूस करता है. ऐसा लगता है जैसे अरुणिमा कोई दूसरी नहीं बल्कि परिवार का ही हिस्सा है, उनकी कहानी बताकर मैं सिर्फ यही कहना चाहुगी की जो ज़िंदगी का सामना करते है वही इतिहास को रच पाते है. ” जीवन आगे बढ़ने का नाम है” जीवन नाम है तपिश का जिसमे मानव की जीत निश्चित है.
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