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इतिहास हमेशा बलिदानो का होता है, मिटटी पर मर मिटने वालो का होता है, युद्ध के बाद हम राजा की जीत को उसके रणकौशल का स्मरण करते है, जैसे ” छापामार ” युद्ध कौशल , जिसके द्वारा मुगलो की सेना के दात खट्टे हो गए, हम सब ” शिवाजी ” ” लक्ष्मीबाई” का नाम बड़े ही सम्मान और गर्व के साथ लेते है, भगत सिंह युवा वर्ग के लिए मिसाल है, तो आज़ाद के शब्द आज भी मन में जोश और जुनून भर देते है, पर कुछ ऐसी भी हस्तिया है जो छिपी हुई है , जिनका बलिदान बहुत ही महान था , जो रणकौशल में माहिर थे, जिन्हे अनेक भाषाओ का ज्ञान था , पर इतिहास ने उनको महत्व नहीं दिया , जैसे की जासूस . ऐसा सुनने में आता है की हमारे ” सम्राटो” के पास ” निपुड जासूस” हुआ करते थे, जो दुश्मन के घर जाकर सारी जानकारी निकाल लिया करते थे ,उनकी कामयाबी पर ही ” शासक ” की कामयाबी टिकी होती थी.
हम सबसे गद्दार ” दुलाज़ो” का नाम सुना है, जिसने अंग्रेज़ो के साथ मिलकर “झांसी के” दुआर खोल दिए, और अंग्रेज़ो की सेना ने अंदर प्रवेश किया, ना चाहते हुए “लक्ष्मी बाई” को अपना किला छोड़ना पड़ा, यदि “दुलाज़ो ” ऐसा ना करता तो शायद आज इतिहास कुछ और ही होता.इसी प्रकार कुछ लोग ” गुप्तचर ” की कला में बहुत परागत हुआ करते थे. कुछ विशेषज्ञों के अनुसार” एक जासूस को कला के साथ खानपान, तथा भाषा के ज्ञान में भी पारंगत होना पड़ता है. और वो जासूस ही किया जो मौत को चकमा ना दे सके.यह बाते तो हम सब मनोरंजन के तौर पर टीवी में या फिर मूवी में देखा करते है.पर कुछ ऐसी हस्तिया भी है जिनके नाम हमारे पास है, जिनके बारे में हमने पढ़ा भी है , पर उन्हें ” तवज़्यो ” नहीं मिली. जैसे आप सबने ” सुभद्रा”का नाम सुना होगा कृष्णा की बहन “अर्जुन की पत्नी और अभिमन्यु की माँ . सुभद्रा को योग माया के नाम से भी जाना जाता है. जिसने कृष्णा के प्राणो की रक्षा की थी. एक ऐसा वीर पुत्र ज़ना ” जो धर्म ” के लिए ” अकेले ही “सात सात ” महारथियों से लड़ा अभिमन्यु. पुत्र के मरने पर माता की पीड़ा क्या होती है यह कोई नहीं समज़ सकता. सुभद्रा ने तो “उतरा अभिमन्यु की पत्नी” का गर्भ तक नष्ट होते देखा, जिस पर ” ब्रम्हास्त्र ” से आक्रमण हुआ, कृष्णा की महिमा से वही बालक आगे ” परीक्षित ” के नाम से जाना गया. सुभद्रा का बलिदान शायद एक मिसाल है, पर महाभारत शायद द्रौपदी को ही महत्व देती है. और हम भी.
ऐसा एक और ग्रन्थ है “रामायण” जिसमे सीता ज़ी के धैर्य और परीक्षा का यशोगान आज तक है, पर हम ” उर्मिला को भूल जाते है, वो उर्मिला जो लक्ष्मण की पत्नी थी, जिन्होने चौदह साल अपने पति के बिना काटे . वनवास में “राम सीता ” साथ साथ थे, रावण के हरण से लेकर “अग्नि परीक्षा ” तक हम सब सीता जी के लिए काव्य लिख देते है, पर उर्मिला की परीक्षा का क्या? पति से दूर रहना क्या किसी अग्नि परीक्षा से कम है. आज भी पति पत्नी का साथ में होना ही शादी की खुशियो का आधार माना जाता है. सोचिये की किस प्रेम आदर भाव के साथ “उर्मिला” ने पति से दूर अपने बड़ो की सेवा की होगी. यह जानते हुए की “लक्ष्मण” कैकयी की वज़ह से उनसे दूर हो गए , “उर्मिला” ने कभी “किसी का अनादर नहीं किया. क्या यह अदभुत धैर्य का परिणाम नहीं. कहा तो यह भी जाता है की ” उर्मिला” को पति से बहुत प्रेम था इसलिए उन्होंने वरदान स्वरुप चौदह साल की नींद मांगी , पर इतिहास ना तो कभी इसका उल्लेख करता है ना ही कभी इसका यशोगान करता है .
ऐसे ही महान श्रंखला में नाम आता है गौतम बुद्ध की पत्नी “यशोधरा” का .गौतम बुद्ध का एक पुत्र भी था” राहुल” एक रात वो अपनी पत्नी तथा पुत्र को छोड़कर चले गए, बुद्ध का इतिहास बहुत ही महान तथा प्रेम से भरा हुआ है. पर पत्नी के त्याग का क्या? समाज की ज़िम्मेदारियों के खातिर अपने व्यक्तिगत जीवन को छोड़ देना गलत नहीं है? सोचिये एक पत्नी के लिए स्वीकार करना कितना कठिन रहा होगा की जीवन पथ पर अब उसका पति उसके साथ नहीं है , एक माँ का यह स्वीकार कर पाना की आज उसके बच्चे के साथ उसका पिता नहीं है कितना मुश्किल रहा होगा . पर इतिहास कभी भी ” यशोधरा ” को उसके त्याग के लिए याद नहीं करता. यदि ” यशोदारा ” भी अपनी ज़िद्द पर अड़ जाती, अपना ” पत्नीधर्म ” और अधिकार मांगती . तो इतिहास कुछ और ही कहता. आज भी हम कहते है की एक कामयाब आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है.तो क्या ” यशोधरा ” का यशोगान नहीं होना चहिये?
यदि हम उदाहरण उठा कर देखे तो शायद ऐसे महान लोगो कोई कमी नहीं. पर हम या तो उन्हें दुनिया के सामने लाना भूल जाते है. या फिर अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं करते. बचपन में माता पिता हमें संस्कार देते है, पढ़ाते लिखाते है. पर आगे जाकर हम दिमाग का कैसा इस्तेमाल करे, कौन सी दिशा में आगे बड़े यह सिर्फ और सिर्फ हम पर निर्भर करता है. आज भी कई अनकहे पहलु है जिन्हे पढ़ना तथा देखना बाकि है. आज भी मिटटी पर से परत उठा ने की ज़रूरत है. एक नई दिशा को देखने की ज़रूरत है.
बलिदान को खोने मत दो , देखो की क्या नया हमें बताना है? ऐसे और कितने शूरवीर है जिनके बारे में हम जानते ही नहीं है.जिन्हे दुनिया के सामने लाना है. ऐसा नहीं की जो मुख्य नहीं वो ज़रूरी भी नहीं होता . कभी कभी छोटा पत्थर भी मज़बूत नीव का निर्माण करने में एक एहम भूमिका रखता है. ख़ास की खासियत को सामने लाना एक ज़िम्मेदार नागरिक का कर्तव्य ही नहीं बल्कि उसकी ज़िम्मेदारी भी है.
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