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देखा है मैंने मुखौटे के पीछे के भयानक चेहरे को, देखा है दम तोड़ती सांसो को,
जीवन के इस मंज़र पर आज पाना ही है सुब कुछ, दौड़ को है जीतना चाहे परिणाम कुछ भी हो अपना ,
आगे बढ़ना है बस फिर चाहे कीमत हो कुछ भी , भोपाल गैस कांड आज भी है ताज़ा, पर है फिर भी प्रकृति के साथ खिलवाड़……
इराक जाने पर है पाबन्दी, ज़िहादो का फिर घना साया, क्यों आज हर कोई है खोया खोया ……………
अख्बार के पन्ने भी सुनाते है सिर्फ और सिर्फ जुलुम की दास्तान, खोई है कही आत्मा की पुकार???
सर्द रातो में इंसानियत भी है आज दम तोड़ती, काली सीहाई से लिखी है आने वाले कल की तकदीर …………
ना जाने कब बड़े महगांई, , छोटी छोटी बातो में क्यों करे वक़्त बर्बाद???
सिर्फ साधा है निशाना हमने दूसरो पर, आने वाले कल की नहीं कोई तैयारी……………….
शायद अब तो शब्दो की तालीम भी है खाली………………….
आज सिर्फ है एक प्रश्न पूछना , की क्या कभी विकास के इस चरम पर मन भी देगा कोई गवाही ????????????????????
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