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फांसी

deepti saxena
deepti saxena
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भारत देश की नीव में स्वतंत्रता तथा समानता की जड़े आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से है, जैसे चन्द्र गुप्त के समय न्याय संहिता , सम्राट अशोक के समय तो देश में कुछ विदेशी यात्री भी आये उन्होंने देश की कानून वयवस्था की काफी तारीफ भी की है, अकबर के समय में भी देश में न्याय संहिता का प्रचलन था, आज़ादी के बाद देश ने ” निश्पक्ष न्याय व्यवस्था ” का समर्थन करते हुए , न्याय पालिका को एहम तथा सभी “राजनैतिक पार्टियो” से अलग देश का आधार माना तभी तो देश में ” सुप्रीम कोर्ट ” के अधिकार छेत्र बिलकुल अलग है, अभी कुछ दिनों पूर्व यह मामला गरमाया की ” बलात्कार ” के दोषियो को ” मृत्युदंड ” दिया जाना चाइये या नहीं, मुझे इस बात से एक घटना याद आती है ” की अगर आप देश में ज़्यादा ट्रैफिक सिग्नल ” लगवा दो तो क्या एक्सीडेंट बंद हो जायेगे ? या फिर कैंसर के मरीज़ को मार देने से कैंसर नहीं होगा , आज हमारा देश ” पोलियो” मुक्त है क्यों? क्यों की देश के चिकत्सको ने यह समझा की देश को एक ताकतवर नस्ल की ज़रूरत है, इसलिए पोलियो का वैक्सीनेशन बनाया गया , ठीक उसी प्रकार आज ” अपराधियो ” के मन में कानून के प्रति खौफ क्यों खत्म होता जा रहा है? आज सुबहः ही न्यूज़ चॅनेल में देखा की “बैंगलोर” में चार गुंडे एक घर में घुसे खुद को पुलिस वाला बताया घर में लूट पाट की बलात्कार किया, फिर “रफूचक्कर ” हो गए ? कैसे ? देश में शांति हो न्याय हो हर नागरिक स्वम को सुरक्षित महसूस कर सके? “फांसी ” किसी समस्या का हल नहीं पहली बात तो यह की देश में ईव टीजिंग के केस को पुलिस महत्व क्यों नहीं देती? क्यों हमारे देश में “रोड, साइड ” रोमियो से जबाब नहीं माँगा जाता की वो सड़क पर क्या करे रहे है? आप न्यूज़ पेपर पढ़ कर देखिए , न्यूज़ चैनल को देखिए या फिर क्राइम पर आधारित धारावाहिक , कितने ही मनचलो ने लड़कियो की ज़िन्दग़ी बर्बाद कर दी, बिहार का “जघन्यय ” एसिड अटैक जिसमे मनचले बेल पर छूट गए, अब सोचिये की क्या हैसियत है हमारे देश की पुलिस की इन मनचलो के सामने वो सोचते है की क्या फरक पड़ता है, अपराध करो सजा मिलने में तो सालो लगेग़े, ऐसा नहीं है की मुझे देश की न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं, मैँ आज के ज़माने की स्वतंत्र विचारो की लड़की हू, जो मानती है की “न्याय पालिका” का मज़ाक उड़ाने का हक़ किसी को भी नहीं, पर इस ” भयानक सच्चाई” का क्या? की देश के कितने ही भागो में “बलात्कार ” तो जैसे आम बात बन चुकी है . इन्साफ मागते मागते शायद देश की बेटी के लिए अब तो शब्दों की ज़ुबान भी कड़वी हो चुकी है, प्रशासन ऐसा कोई रास्ता क्यों नहीं ढूंढ़ता ? जिससे आम आदमी खुद को सुरक्षित महसूस करे? अच्छे दिन आने वाले है, पर हम लड़कियों के लिए “सुरक्षित “दिन कब आयेगे , किसी को मृत्युदंड देने से समस्या कभी सुलज़ती नहीं, जानना होता है उस समस्या की जड़ को, वास्तव में आज पुलिस का खौफ है ही नहीं, तभी तो देश में अपराधो की संख्या बढ़ती ही जा रही है, यदि प्रशासन छोटी से छोटी वारदात को महत्व दे तो शायद अपराध हो ही ना, हम भी कभी कैंसर , एड्स या फिर टी बी होने का इंतज़ार नहीं करते छोटी से छोटी बीमारी होने पर डॉक्टर की सलाह लेते है, बच्चो को स्वस्थ जीवन देने के ;लिए बालपन से ही “टीकाकरण” करवाते है, तो देश ऐसा क्यों नहीं करता?”फांसी” मिले या नहीं यह एक अलग मुददा है , शायद हम किसी की ज़िंदगी नहीं लौटा सकते , तो लेने हा हक़ हमें नहीं, पर हा समाज को बीमारियो से निजात तो कर सकते ही है, बॉर्डर पर जवान शहीद होते है जिससे देश की आत्मा सुरक्षित रहे, पर देश के अंदर की गंदगी का क्या? कानून इतना मज़बूत हो जिससे हर मुल्ज़िम घबराये , अपराध करने से डरे, कानून की पकड़ इतनी मज़बूत हो की कोई बच कर न जा सके? गांधी जी ने अपराध मुक्त भारत का सपना देखा था, हम २ अक्टूबर तो हर साल मानते है, १५ अगस्त भी पर शायद यह भूल जाते है, की वाद विवादों में ” फांसी की सजा ” को देने या नहीं देने से से कुछ भी नहीं होगा, कुछ भी नहीं, ना जाने कितने ही “चिडियो” के पंख रोज काट दिए जाते है, कितनी ही नन्ही परिया तो उड़ान भरना ही नहीं चाहती, यह दौर कब खत्म होगा?प्रशासन सिर्फ यह ही सोचता है की सजा क्या मिले?” यह तो सोचिये की जो आज हालत है उन्हें बदला नहीं जा सकता क्या? देश को साफ़ सुथरा बनाना ज़रूरी है, ;पर आत्मा को खूबसूरत बनाना सबसे जयादा ज़रूरी है , खुद ही विचार कीजिए ………..

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