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२६ जनवरी सन१९५० को सारे देश में ” संविधान ” लागू किया गया .इस दिन को आज हम सब “गड़तंत्र दिवस ” के रूप में मानते है, सही मायनो में तो भारत ने २६ जनवरी १९५० से ही खुद को स्वीकार किया, दुनिया के नक़्शे पर एक उभरती ताकत, जिसका लक्ष्य ” स्वतंत्रता , समानता के साथ आगे बढ़ने का था , आज़ादी के बाद हमारे देश के ” सेनानियो ने, समाज सुधारको ” ने यह निश्चित कर लिया था, की यह देश सबका है, जहा जाती , धर्म, लिंगः, भाषा, क्षेत्र , के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएग़ा, राष्ट्रपिता “गांधी जी” ने देश की जड़ो को मज़बूत करने के लिए जीवन पर्यन्त “बाल विवाह” छुआछूत , तथा समाज में विधवा उत्पीड़न , विधवाओ के खिलाफ समाज की विचारधारा का उन्होंने सदा ही विरोध किया, नमक कानून के खिलाफ गांधीजी के साथ महिलाओ ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेकर देश के प्रति अपनी भाग़ीदारी को दर्शाया , इसी प्रकार कई और समाज़सुधारको ने महिला पुनरुथान के लिए कार्य किये, जैसे राजा राम मोहन राय ने “सती प्रथा को अमानवीय बताया तथा ” विलियम बेटीक” के साथ मिलकर इसके खिलाफ कानून भी बनाया, पंडिता रमाबाई ने जीवन पर्यन्त महिलायो के पुनरुथान के लिए कार्ये किया, देश में कई सारे विश्वविद्यालयो की नीव डाली गयी ” जो महिला सशक्तिकरण ” के लिए छात्राओ को पढ़ाना चाहते थे, आज भी देश में कई ऐसी हस्तिया है जो महिला सशक्तिकरण के लिए अग्रसर है, जैसे नीता अम्बानी फाउंडेशन , फेयर एंड लवली फाउंडेशन, काफी राज्यो में तो राजयसरकार भी “लड़कियो ” के लिए मुफ्त शिक्षा अभियान चलाती है, काबिल छात्राओ को ” छात्रव्रती ” भी प्रदान की जाती है, महिला सशक्तिकरण हेतु ” पॉलिटिक्स” में भी आज कल महिलाओ की एक सशकत भूमिका देख्ने को मिलती है, मोदी जी भी ” इसी विचारधारा का समर्थन करते है ” महिलाओ को आत्मनिर्भर बनाया जाये, : बेटी बचाओ ” मुहीम को उन्होंने काफी प्रसारित किया है , बल्कि आजकल सोशल मीडिया के द्वारा तथा छोटे परदे पर महिलाओ के खिलाफ हो रहे अतयाचारो का पुरज़ोर विरोध किया जाता है, यदि देखा जाये तो यह एक तर्क संगत बात भी है, की समाज में केवल एक ही वर्ग को आगे बढ़ने का मौका क्यों मिले? स्त्री पुरुष, दोनों की ही समाज में महत्वपूर्ण भूमिका है, माता पिता दोनों के ही परस्पर प्रेम से यह समाज आगे बढ़ता है, आजकल तो” हाउस वाइफ” के काम को भी मंच देने की बात कही जा रही है, जिसे कोई छुट्टी न मिले, किसी प्रमोशन की, सैलरी इन्क्रीमेंट जैसी कोई डिमांड नहीं ऐसा काम तो सिर्फ और सिर्फ हाउस वाइफ ही करती है, जिसे कभी भी रिटायरमेंट नहीं मिलता, बच्चो के विकास में माता की एहम भूमिका मानी जाती है , तभी हमारे देश में गर्भसंस्कार को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है, ” माता कभी ” कुमाता नहीं होती यह सब सदियो से सुनने में आता है ” पर जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलु होते है, जैसे एक पुरानी कहावत के अनुसार ” अधिकार के साथ साथ ज़िम्मेदारी का भी वहन करना पड़ता है, नारी को शक्ति का स्रोत इसलिए माना जाता है क्योकि उसके मंन में प्यार तथा अडिग विश्वास होता है, जिसे परिवार की ढाल भी माना जाता है, कहा जाता है की आज की लड़की में ” जज्बा ” माउंट एवरेस्ट ” पर चढ़ने का है, जो हर चुनौती के लिए तैयार है, जो सब कुछ कर सकती है सिर्फ एक खुला आसमान तो मिले ” खुद पर विश्वास करके आगे बढ़ना ” जैसा ” मैरी कॉम ” ने किया है , देश के सम्मान के लिए समर्पण , जैसा ” महादेवी वर्मा ” में था , या फिर “टेलीविज़न की रानी” एकता कपूर ” में है, इन्होने तो अपना हक़ खुद ही लिया , खुद को साबित किया, यह मेरा अपना मत है की दुनिया हमें “सलाम तभी करती है , जब हम में हो कुछ बात , समय की धरा को समज़ना ज़रूरी है , आजकल महिलाओ की सुरक्षा को लेकर देश में व्यापक तौर पर आंदोलन चल रहा है , दिल्ली दिसंबर को हुए अभी कुछ समय ही हुआ है, की देश में छोटी बालिकाओ के साथ बलात्कार जैसी गृणित मानसकिता सामने आ रही है, अभी कुछ दिनों पूर्व बंगलोर में एक स्कूल की वारदात सामने आई , मुझे एक वृत्तांत याद आता है” की जंगल में हुआ शेरनी के बच्चो ” पर वार तो वो अकेले ही टूटः पड़ी सब पर, अब लोग सोचेगे की आम लड़की की शेरनी से तुलना क्यों नहीं आज नारी परिवार की रक्षक क्यों नहीं हो सकती है ? जब देश में माँ दुर्गा को पूजा जाता है, दुनिया के कई देशो में दो साल के लिए हर नागरिक को आर्मी की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि युद्ध हो तो सैनिक आपके घर में ही मौजूद है, आजकल सेल्फ डिफेन्स की बात हर जगह की जाती है अभी कुछ दिनों पूर्व की ही बात लीजिए” जब मेरठ की ममता ” ने बदमाशो के छके छुड़ा दिए, यह एक ज़रूरी बात है की “महिला सशक्तिकरण के लिए” आज हमसबको मर्दानी ही बनना होगा, लोग कई प्रकार की बाते करते है महिलाओ के बारे में जैसे की ऐसे कपडे क्यों पहनती है? रात को देर तक ऑफिस में क्यों काम करती है? अब समय ज़वाब मांगने का नहीं देने का है ? हम खुद काबिल है अपनी रक्षा के लिए? मरो तो सबक सीखा कर मरो अपनी आन के साथ खिलवाड़ मत होने दो चाहे आप टीचर हो या स्टूडेंट डॉक्टर हो या नर्स हाउसवाइफ हो या फिर कोई अफसर, अपने लिए किसी को मर्यादा की रेखांए मत बनाने दो, जब हम परीक्षा में फर्स्ट आ सकते है देश का नाम रोशन कर सकते है, तो अपनी आत्मरक्षा में पीछे क्यों? जब भी पेपर में किसी “एसिड अटैक ” या किसी “बलात्कार ” की घटना के बारे में पढ़ो तो लगता है एक चिड़िया के फिर पंख काटने की कोशिश की गयी, यह समय खुद को शशक्त करने का है? क्योकि भगवान हम सबके अंदर है बस ज़रूरत है तो पहचानने की??
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